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औघड़ का दान एवं अन्य कहानियाँ

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16994
आईएसबीएन :9781613017753

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प्रदीप श्रीवास्तव की सात बेहतरीन कहानियाँ

 

भूमिका

 

"औघड़ का दान" मेरे इस कहानी संग्रह की भी कहानियाँ हमारे समाज में ही हुई कुछ बातों, घटनाओं पर केंद्रित हैं। यह ऐसी बातें, घटनाएँ हैं जो दुर्भाग्यवश हमारे समाज का हिस्सा हैं। जबकि इन्हें किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह सब किसी भी सभ्य समाज के लिए अनुचित हैं, गलत हैं। पहली कहानी ही एक अत्यंत सामान्य सी बात से प्रारम्भ होकर, ऐसी असाधारण स्थितियों से गुजरती हुई शीर्ष की ओर बढ़ती है कि मन बार-बार कह उठता है, हे ईश्वर तुम्हें यह नहीं करना चाहिए, कहीं तुम भी भूल तो नहीं कर बैठे। संग्रह की हर कहानी का विषय भिन्न है, इसलिए दूसरी कहानी एकदम ही अलग दुनिया में ले जाती है। जहाँ हम समाज के उस रूप को देखकर फिर उसी ईश्वर को याद कर बैठते हैं, जिस पर पहली कहानी को पढ़ते हुए संदेह कर बैठे थे कि प्रभु तुम भूल तो नहीं कर बैठे। मन द्रवित होता है, व्यथित हो प्रार्थना करता है कि हे प्रभु यह दिन मुझे कभी न दिखाना। अगली कहानी स्वतन्त्रता, स्वच्छंदता के अंतर को न समझने या जानते-समझते हुए भी उपेक्षित करने, नैतिकता, मूल्य-मान्यताओं को ठेंगा दिखा के कोई भी क़दम उठा लेने से उत्त्पन्न बड़ी विचित्र स्थितियों की तस्वीर उकेरती है।

जिस वास्तविक घटना पर यह कहानी आधारित है, उस घटना की हर बातों को जानने, कारण को समझने के प्रयास में ऐसी कई बातें सामने आईं जिन्हें मैं कहानी में लेना चाहता था, इच्छा थी कि मेरी अन्य तमाम कहानियों की तरह इस कहानी में भी पूरी घटना हो। लेकिन घटना के आख़िर में जो कुछ हुआ था, क्योंकि वह बड़ा अमानवीय था, इसलिए उसे कहानी का हिस्सा नहीं बनाया। आख़िर लिखने की भी एक मर्यादा होती है। क़लम भी स्वतंत्र हो सकती, स्वच्छंद नहीं। क्योंकि स्वच्छंद क़लम भी अराजकता ही पैदा करेगी। अगली कहानी भी स्वतंत्र भाव, क़लम से ही लिखी गई, लेकिन जिनके बारे में लिखी गई, उनके जो काम इस कहानी का हिस्सा हैं, उन्हें देखते हुए वह सब काम करने वालों को स्वच्छंद कहा जाए या स्वतंत्र या उनके सामने जो परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं, उस कारण उन लोगों के समक्ष वैसा कुछ करना विवशता थी।

मेरा विचार है कि पाठकों के लिए भी यह तय कर पाना आसान नहीं होगा। क्योंकि यह कहानी है ही ऐसी। शेष कहानियों में भी महत्वाकाँक्षाओं, जीवन संघर्ष के पथ पर मिलने वाले विविध अनुभवों, सच्चे झूठे साथियों की झूठ-फरेब की अचंभित करने वाली बातों, वैचारिक संघर्षों की ओर बढ़ती दुनिया, स्वछंद आचरण में ही जीवन आनंद खोजने वाले लोगों से सामना होता है। इसीलिए यह कहानियाँ पाठकों से समीपता बनाने में सक्षम हैं।

- प्रदीप श्रीवास्तव






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